होली के जीवनरंग। ......
बचपन की वो प्यारी होली। .. कैसे यादों से निकलती। ..
जमकर रह गयी यादें। .. थोड़ी परते चढ़ गयी। ..
आज जला रही हु मैं वो चढ़ी हुई परते। ..
आज होली फिर मना रही वही बचपन की यादें। ..
कोई भैया ,लाडली बहना सुबह सवेरे जगती । .
अरे चलो होली खेले ,हाथ पकड़े खींचती ..
चलो तैयार हो जाओ ,पुराने कपडे पहनाती। ..
सारे अंग में तेल मसल मसल कर लगाती। ..
माँ भी सिर तेल डालती ,खुप चपक चपक चौपड़ाती। ..
कोई काका मामा हमें पिचकारी हाथ थमाता। ..
कोई पिचकारी में रंग सूंदर भर देता। ..
सबसे छोटी मैं गुलाल से रंग जाती। ..
बड़े ,छोटे सभी साथी मेरी पप्पी ले लेती। ..
छोटे छोटे मेरे हाथ पिचकारीऔर कसकर पकड़ते। ..
कोई देखे नहीं पिचकारी, उसे फ्रॉक में समेट लेते।
पिचकरी दबक जाती , और छिपाती मैं उसे अपने फ्रॉक में ।
पिचकारी खाली हो जाती , सब रंग मुझपर छलक जाते। ..
मै भी रंगमेँ रंग जाती , कोई हॅसते मुझे ,कोई चिढ़ाते। ..
मैं थोड़ा नाटक करतीं,,रट रट के रोती गला फाड़के।
माँ फिर दूसरे फ्रॉक पहनाती ,रंग पोछे देती
माँ फिर गले लगाती ,मैं हसती ,
निकल फिर जाती हु रंग खेलने , रंग रंगने।
यौवन का रंग कितने नाजुक ,कितने गहरे। ..
गौरवर्ण में खिलती रक्तिम लालिमा गालोंपर। .
गुलाब पंखुडियों सी गुलाबी अधर
कोई नागिन सी लहराती चमक गेसुओंपर
कजरा कारा सुन्दर भाये नयनोंपर
यौवन है रंगशाला ,रंग में खिलखिलाती कंचन काया।
यौवन है रसशाला , रसरसती काया की मैं छाया।
मन में लहरता सपन्नो का साजन आये तो मुझसे छुपकर
हाय रसिया, साजन ,बालम, आये हाथों में गुलाल लेकर। .
किस रंग में रंग जाऊ प्रियतम ,सिवा प्रेम रंग छोड़कर। .
बालम के रंग रंग में यौवन जुलता जाये।
मैं चाहु कोई मुझे आलिंगन में ले।और अपने रंग में रंग रंग दे
अपने रंग में , प्रेमरंग में ,मोहे भी रंग दे
यौवन है रंगशाला ,यौवन है रसशाला , यौवन है मधुशाला
रंग दे साजन मोहे , राधा रानी सा ,राधा के अंतरंग सा । ..
जीवन रंग बड़ा सुनहरा वृद्धत्व की ओर चला।
बालोमे चढ़ गयी चांदी। .ऐनक का रंग सुनहरा
कितने रंग चढ़े ,कितने उड़ गए ,कितने बच गए। ...
मन वृद्धत्व में गिनती करे। फिर लगता ऐसा, मुझे भी रंग लगाए कोई
अब नाती पोती मुझे गुलाल से रंगते ,पैर छूते , और प्यार से पप्पी लेते। .
खुप मिठाई ,खुप जिलेबी , कचौड़ी और गुझिया खिलाते। ..
अब होली के लिए मै शॉपिंग भी करता
अब रंग खेलने नए सफ़ेद कपडे पहनता ,
रंगबिरंगे मेहमान देखो, आते जाते
हरा पीला काला लाल चमकीला और मै चमकता हु सफ़ेद कुर्ते मे । .
फिर वही मिलना जुलना ,गले लगाना ,रंग लगाना ,गुलाल लगाना। .
यारों ,दोस्तों के बीच हास्य रंग में उलझ जाना , ठहाके लगाना। ..
ये सब तो होता ही है ,फिर कुछ पिछे छूट गया क्या ,ख्याल आता है। ..
फिर हसींन ,रंगीन यादें छलकती , वृद्धत्व पिछे हट जाता। ..
रंग रंग में प्रिया तुम्हारे ,मन हरा हो जाता
इस जिवन चक्र में जिवन रंगीन हो जाता ,
फिर हरा हो जाता। और गहरा हो जाता। ..
मैं फिर बचपन और यौवन सा रंगीन हो, जाता रंगीन हो जाता।
कवयित्री। .adv अर्चना गोन्नाड़े ,ADV.Archana Gonnade
बुढ़ापा आया तो क्या , मन तो अभी हरा है। ..
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