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Thursday, 30 July 2020

मै पाँखि ----पलछिन। .

मै पाँखि  ----पलछिन। .

adv अर्चना गोन्नाड़े 
मै पाँखि  ----पलछिन। .
सुरज  ने अपनी प्रभा चारो ओर बिखेर रहा 
सुनहरी लालिमा से पूर्व दिशा प्रकाशित हो रही 
हौले हौले पशु पक्षी जाग रहे थे 
सुमधुर किलकिल पंछियोंकी सुनाई दे रही 
पेड़ोपौधो  में कुछ हलचल हुई
मंदिर में पूजा पथपाठ के स्वर सुनाई आ  रहे
मैं जग गयी सुबह सवेरे। .. 
मेरा घर तो 
पुर्व दिशा में खुलता 
खुला खुला आसमां  
रोज यह दृश्य देखती हु।अनुभव करती हु  .. 
मन में कही ठहर सा जाता है।
यह दृश्य प्रभात समय का।
बस चाय की प्याली हाथ में थामे 
टेरेस पर सटे कुर्सी पर बैठना
मुझे अच्छा लगता हैं।
छोटे छोटे गमलों मैंने पौधे जो लगाए
अपने घर आंगन को सजाया है
भिनी भिनी खुशबु से मै भी महक उठती हु... 
मै ओर मोहक लगती हूँ। .. 
आज भी सुबह सवेरे  निंद से ऐसेही जग गयी 
टेरेस पर आ गई।
पुनःश्या वही दृश्य मन को भा  गया 
अनायास ही मेरे हाथ समिट गए.. 
प्रातः वंदन के लिए.
बस एक पंछी आकर डाल पर आ  गया 
जैसे झुला झुला रहा हो 
पौधे के एकदम ऊपरी डाल  पर झुल  रहा
हाथोमे मोबाइल न था 
                                                 वह मैं  देख रही adv अर्चना गोन्नाड़े                                    
क्षण,मन तो बद्धः हो गया 
मई मोबाइल लेने जाऊ तब ये रहे या नहीं 
किन्तुु परन्तु बहोत थे 
दौड़के मोबाइल लिए पहुंची टेरेस पर 
पाँखि वही था ,झुला झुले
झपक से बस दो चित्र  ले पायी 
मन हुआ मेरे भी पलछिन 
पाँखि सी मई भी विहार करू गगन में 
झुला झुले मस्त पवन के झोंके  में..
जिंदगी हो मेरी पंछी  सी 
बद्ध न करो इस पिंजड़े मेँ... 
दशदिशाओँ में घुम आउ
तुम आ यदि,नजारोमे तो कहीं 
थोड़ा ठहर जाऊ
थोडासा ठहर जाऊ।
रचयिता। ... adv अर्चना गोन्नाड़े 
चित्रछाया----adv अर्चना गोन्नाड़े




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