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Tuesday 20 October 2020

माँ वरदायिनी---कूष्माण्डेति चतुर्थकम---नवरात्र ---४

माँ वरदायिनी---कूष्माण्डेति चतुर्थकम---नवरात्र ---४



माँ वरदायिनी---कूष्माण्डेति चतुर्थकम---नवरात्र ---४

या देवी सर्वभुतेषु लज्जारूपेण संस्थिता ।  

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः 

माँ तेरे द्वार आज फिर आयी हु माथा टेकने

बड़ा आनंद आता है पुजापठन में। .. 

धुपदीप आरती ,प्रसाद ,मन में प्रसन्नता है। .. 

माँ तुम हर  रूप में बसी हो। . ... 

सौभाग्यशालिनी स्त्री में ,पुत्री में हो 

भाग्यवान,बलवान पुरुष में ,पुत्र में हो। ...

सभी प्राणिमात्रोंमे तुम हो माँ। .. 

प्रकृति के सृजन का अधिकार दिया 

वरदान तो बीज का तुमने पुरुष को दिया। ..

 एकदूजे के पूरक बनाया माँ तुमने। ... 

एकदुजे से समर्पण की भावना होती है। ... 

एकदूजे से  कुछ पाना ,कुछ खोना होता है 

कुछ त्यागना होता है ,कुछ सहना होता  है...

लज्जा तो निसर्गदत्त  अलंकार है .... 

लज्जा तो विनयशीलता है। .. 

लज्जा में माधुर्य है, लज्जा मधुरिमा है 

लालायित होना लज्जा का स्वाभाव नहीं

लज्जा सहज है सुंदर है स्वाभाविक है। ....... 

लज्जा की बात जब होती है ,

तब रक्षण की बात होती है...... 

स्वयं का रक्षण करना मानवीय अधिकार है

दूसरोंका रक्षण करना मानवता का प्रतिक है। 

चाहे स्त्री हो। पुरुष  हो..बच्चा हो बुढ़ा हो ,नंगा हो ,भूखा हो। ..

लाजरक्षण होती है तो वस्त्रों की बात होती है। ... 

जिसने भी वस्त्र  का संशोधन किया ,वस्त्र बनाये।।। 

उनको कोटि कोटी प्रणाम।।।।

लज्जारक्षण का साधन तो मिला। ...

हम कोई आदिमानव नहीं, 

वस्त्र परिधान करना भी कला है। ... 

वस्त्र हमारी लज्जित नहीं  होने  देते।।।  

मै घुंघट में भी सुंदर हु,चोली दामन सवारती हु . 

क्या ढका हुआ सुन्दर नहीं होता?

सुंदरता सिर्फ  वस्त्रो में ही होती है?

किसका मन भी सुन्दर होता है। ....

परिधान तो हमारी शान है। ...  

जमाना बदल गया ,लोग बदल गए ,

आचार विचार बदल गए ,रहन सहन बदल गए। ...

समाज के मान्यताओं का ध्यान मुझे  भी  है। .. 

मेरे लिबास का ,वस्त्रप्रावरणोंका ध्यान है। .... 

मैं स्त्री इसी मिट्टी से बनी हु जैसे भगवान तुमने ,पुरुष बनाया।।।।

क्या किसी पुरुष का कर्त्तव्य नहीं स्त्री को सन्मान देना। ..

स्त्री का लज्जऱक्षण करना ,माँ है ,बेटी हैं ,बहना है। .. 

कितना प्यार करती  है तुमसे।।।।। 

दूसरोंकी भी माँ बहनें बेटीयाँ  है। इज्जत उन्हें  भी  प्यारी है 

सामर्थ्यशाली पुरुष से ही अपेक्षा रहेंगी नं माँ ?

मेरी लाज रखनेकी,लाजरक्षण की। ...

बस माँ, एक ही वरदान मांगु। .... 

मैं विनयशील रहु। ... जो विनयशील रहे। .. 

मैं नम्रता से रहु। . जो नम्रता से पेश आए। ..

मै सहज रहु। .. जो सहज है मेरे लिए 

मै नरमी दिखाऊ , जो गर्मी न दिखाए। ..... 

मैं अपना रक्षण खुद करू। . कोई आगे नं आये। .. 

माँ एक ओर वरदान समस्त पुरुषोंको के लिए। ...

प्रकृति का सॄजन करता है पुरुष  

स्त्री की रक्षा करता वो पुरुष है। ..... 

वो  पौरुष कहलाता जिनमे पुरुषत्व हो। .. 

स्त्री रक्षण का भार अपने कांधे उठता हो। ... 

संकट में स्त्री कि सुरक्षा करता वो पुरुष।।।।

लज्जारक्षण करे। अपनी स्त्री का ओर परस्त्री का....

हम स्वयंपूर्ण है , हम सबला है। ...

लेकिन पुरुषों भी हमारे भाई है ,पिता है ,पुत्र है,पती है। .. 

हम कैसे सवारे इनको,हम कैसे सह पाए . ...

पुरुषों की यह निर्बलता ?

वरदान दो माँ ,पुरुषों को जगा दो ,

सुनो माँ ,बस जगा दो माँ पुरुषों को भी। ..

तेरे चरणों पर हम सब लींन है। .. 

भावभक्ति जगा दो.... लाज रखो हे माँ 

कुष्मांडेति चतुर्थकम। ... 

माँ कुष्मांडा को साष्टांग दंडवत। ... 

लेखांकन --adv अर्चना गोन्नाड़े archana gonnade--------------------------------------------------------------https://kittydiaries.com/---------------------------------------------


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2 comments:

  1. लज्जा को अच्छी तरह से समझाया है आपने और माता को पुरूषों के प्रति ध्यान दे कर उनका भी महत्व अधोरेखित किया
    जय माता दी

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    1. thank you so much sir /mam ... its a very precious comment you have wrttien on my
      blog.... very interesting... readers like you inspires me write more ..thanks once again ... keep visiting my website



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