बुद्ध पूर्णिमा.. बुद्ध पूर्णिमा
बुद्ध पूर्णिमा
बुद्ध पूर्णिमा
बुद्ध पूर्णिमा
इसवी सन पूर्व छटी शताब्दी में
वैशाख मास के पूर्णिमा के दिन
कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन और रानी महामाया इन्होने
एक बालक को जनम दिया, लुम्बिनी में.
भगवन ने ही जैसे उनके घर जन्म लिया
उस बालक का नाम रखा सिद्धार्थ ---गौतम
गौतम जन्म के सातवे दिन बाद
महामाया का देहांत हुआ।
माता गौतमी ने उनका लालन पालन किया।
जीवन की सारी खुशिंया ,आनंद हाथ जोड़कर खडी थी।
गौतम ने युवावस्था पदार्पण किया।
सूंदर सुशिल यशोधरा से उनका विवाह हुआ।
पुत्र राहुल अब गोद में खेलने लगा था।
बाललीलाओंके आनंद में
जीवन का पल पल व्यतीत हो रहा था। लेकिन अब। ..
गौतम का उस राजमहल में दम घुटने लगा था।
सोने के पिंजड़े में पंछी कैद था।
मन उसका बाहर की ओर झेंप रहा था।
दुनिया के देखने को तरसा रहा था। अब उड़े की तब उड़े।
और एक रात
सिर्फ २१ वर्ष की आयु में राजमहल ,पत्नी ,पुत्र
सारे संसार को त्याग कर निकल पड़े। ....
एक अन्तरात्मा की खोज में,
आत्मशांति की खोज में,
चिरंतन की खोज में।,
पुरे छह साल सिर्फ देह का शोषण,
साधु सन्यासी की तरह रहते रहते,
वह एक ढांचा बनकर रह गए।
लेकिन मनुष्य के दुःखोंका कारण समझ न पाए।
तब उन्होंने सोचा देह को क्लेश देकर तो,
मैं मनुष्य के दुःखोंका कारण नहीं जान सकता।
फिर उन्होंने अन्न ग्रहण किया सुजाता के हाथों।
दुग्ध प्राशन किया. और
पीपल वृक्ष की शीतल छाया में ध्यान लगाकर बैठ गए।
संसार के सारे सुख:दुख से दूर
एकचित्त होकर एकाग्र होकर। ....
तभी कुछ हुआ.....
अंध:कार में दूर से एक रोशनी आयी और उनमे समां गयी।
बोधि वृक्ष के निचे "गौतम" बुद्ध बन गये।
मनुष्य के दुखों का कारण जान गये।
सिर्फ ३५ साल की आयु में ,
वह दिन भी था वैशाख मास की पूर्णिमा का।
अपने पांच शिष्योको सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया।
बाद में पुरे ४५ साल तक धर्म का प्रचार प्रसार किया।
जिन चीजों से है मनुष्य को प्यार त्यागना ही है उसे सारा संसार। राजधानी वैशाली से विदा हुए आनन्दा को लेकर साथ,
सूंदर कुशीनगर की ओर
विराम करने,
पूर्णविराम,
महापरिनिर्वाण,
वह दिन भी था वैशाख मास की पूर्णिमा का। ..
बुद्धम शरणम गच्छामि.
धम्मम शरणम गच्छामि
संघम शरणम् गच्छामि
यही बुनियाद है बौद्ध धर्म की
बुद्ध धर्म के संस्थापक है
धम्म-- बुद्ध के उपदेश संघ ---
श्रमण और श्रमणीयो के लिए आचार ,व्यवहार,
सभी धर्मों का सार है। मनुष्य स्वाभाव में परिवर्तन करना।
आत्मिक शान्ति यदि है पाना।
अपने स्व -भाव को होगा मिटाना
दुख और भय से मुक्त होना।
ऐसा जब आएगा क्षण शांति पूर्ण वातावरण।
वर्णन ,स्तुति करने के लिए
शब्द ही नहीं रहेंगे हमारे पास।
होगा अपने ही अनुभूति पर विश्वास
जहा होगा भगवान का निवास।
बुद्ध धर्म का उपदेश था सनातन रुढ़ियोंका पुनर्गठण।
अपने ही मूल सिद्धांतो का अनुसरण।
बुद्ध के चार श्रेष्ठ सत्व।
दुःखोंसे भरा है ये मोहमयी संसार
दुखों के कारण है अपार।
कैसे होगा इन् कारणों का अंत.
चलते है उस पथपर जहाँ है उसका अंतिम लक्ष।
जो मार्ग ले जाता है अंतिम बिंदु तक वह है अष्टमार्ग सिद्धांत।
गुढविश्वास और इंद्रजाल से मुक्त है ऐसी ज्ञानशक्ति।
मनुष्य के बुद्धि से झलके ऐसी विचारशक्ति।
दया ,करुणा ,और सत्य प्रतीत हो, ऐसी सच्ची वाणी।
शांतिपूर्ण और प्रामाणिक प्रयत्न हो ,ऐसी सच्ची कृती।
कभी न हो जीव की हत्या अपनाये ऐसी जीवन वृत्ति।
स्वयं प्रशिक्षण और अनुशासन झनकारे ,ऐसी लगन सच्ची।
अपने कृति में सदासर्वदा बरते , सच्ची सावधानी।
जीवन की गहन ,गूढ प्रश्न का चिंतन हो,ऐसी एकाग्रता समाधी.
यह मार्ग हम अपनाये मन होगा शान्त ,तरल।
यह मार्ग हम अपनाये जीवन होगा सहज ,सरल।
पद्चिन्ह वह छोड़ गए भारतवर्ष की भूमि पर।
अमिट भाव रह गए देशवासियोंके ह्रदय पर।
ऐसे अलौकिक तारों का सदा करे सन्मान।
ऐसे भगवान बुद्ध को ,मेरे शतकोटी प्रणाम।
LYRIC/रचियता-- अधिवक्ता अर्चना गोन्नाड़े ,७ में २०२० ,बुद्ध पूर्णिमा
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